Thursday, 18 July 2013

सुखी जीवन की कुंजी अध्यात्म

सुखी जीवन की कुंजी अध्यात्म

मनु समृती में कहा गया हैं -
"इन्द्रियों का निग्रह ,राग द्वेष पर विजय प्राप्त करना और प्राणी मात्र के प्रति अहिंसक रहने से साधक अमरत्व प्राप्त करता हैं /"

मनु समृति की ये दो पंक्तियाँ अध्यातम की और इशारा करती हैं /अध्यातम शब्द का संधि विच्छेद करने से बनता हैं आदि +आ +आत्म आत्मा का आदि , आत्मा का छोर या सिरा,आत्मा क्या हैं उसका स्वरूप क्या हैं यह जहाँ समझ में आया वही अध्यातम हैं /
'य:स्थापितः आत्मायाम स:'
धार्मिक प्रवचनों में व पठन -पाठन में दो शब्द अक्सर आया करते हैं श्रेय मार्ग और प्रेम मार्ग सहज सुलभ तथा मायावी चकाचोंध से भरा हैं जिसका अंतिम पड़ाव विवेकपूरण सुखदायी ,आनंददायी व शांतिदायी हैं /यह श्रेय मार्ग ही अध्यातमपथ हैं 

अमृत -वाणी

                                                            अमृत -वाणी 

  •   इस  जीवन को बहुत बड़ा मत समझो लकिन महँ अवश्य समझो / इसमे जो  कर  जाओगे ,वह जीवन के लिए अत्यंत आवशक चीज होगी /इसलिए   तुमसे बन सके ईश्वर का नाम लिया करो /
  • अच्छे करम किया करो,यही यज्ञ हैं ,ऐसे करम करने में जो कठिनाइयाँ उठानी पड़ती हैं ,वही  तप और इनसे दुसरो को लाभ  होता हैं ,वही दान हैं /
  • सच्चे भक्त की पहिचान यही हैं की वह दिन - रात अनाशक्ति से प्रुभु सेवा के कम करता हुआ भी (सेवा करने ) का अहंकार न करे वरन श्री भरत जी की भांति यही सोचता रहे की मैं कुछ नहीं कर सका /प्रभु कही अप्रसन्न न हो जाये क्योंकि संसार में सेवक का धर्म महान कठिन हैं /
  • आदमी बहुत समय तक भूखा रह सकता हैं ,मौन भी रह सकता हैं ,गृहस्थी और बच्चे को त्याग भी सकता हैं ,जल और अग्नि के बीच बैठ सकता हैं परन्तु मन को काम करने से रोक ले यह नहीं कर सकता इसलिए अध्यात्म साधना बहुत कठिन कही गई हैं /

Wednesday, 17 July 2013

अच्छा अध्यापक कैसे बने

                                                          अच्छा अध्यापक कैसे बने

१. बच्चो के साथ मिलजुल कर काम  करें और खेले भी /
२. बच्चो के माँ बाप के साथ अच्छे और सुंदर व्यवाहर भी और मेलजोल भी बढ़ाये /
३. बच्चो को उनके गलत व्यवाहर करने पर समझाते समय ,उनके साथ हीन शब्दों का इस्तेमाल नहीं करना च
चाहिए /
४.  बच्चो से ग्रुप में बात करते समय हर बच्चे की तरफ देखते हुये बात करना /
५.  जो  व्यवाहर आप  बच्चो से उम्मीद  करती हैं उसे पहले अपने भी व्यवाहर में लाये /
६ क्लास में बच्चो को ऐसे बिठाये की आप उनको और वो आप को देख सके /अगर संभव हो तो उनको गोल दायरे में बिठाये /
७. हर रोज क्लास में कुछ समय ऐसा होना चाहिए जिसमे बच्चे की पसंद का विषय या खेल खेल सके या अपनी बात आप से कह सके /
८. पढ़ते  समय  बच्चो की भागीदारी कभी कभी ले लेनी चाहिए /जिसमे उनको बलैक बोर्ड लिखना,ताकि उनको भी यह लगे की हमे भी पूछा जा रहा हैं/
९. सुंदर व्यवाहार ,प्रेम और अनुशासन ही सफलता की कुंजी हैं /
१० . बच्चो के परिश्रम का श्रेय  भी उनको दिया जाना चाहिए /

आज का समाज

                                                                         आज का समाज

आज की भाग दौड़ भरी जिन्दगी में और  प्रतियोगिता से भरपूर जीवन ने आज मानव को अपनों से ही दूर नहीं किया बल्कि खुद ही से दूर हो गया / नए दौर का जीवन जिसने हमें सुख सुविधाएं ही नहीं दी / आर्थिक सम्पनता भी दी हैं / फिर हम क्यों धन के लालच में अपना ही नहीं बल्कि अपनो का भी भला नहीं कर रहे हैं / माँ बाप जिन्होंने हमें भरपूर प्रेम से पाला पोसा आज वही पराये लगने लगे / वो अकेले चुपचाप गुमसुम से अपने बच्चो की बात सुनने का इन्तजार करते रहते हैं / ये वाही माता पिता हैं / जिन्होंने अपने जीवन की सुखदायक घडियों की परवाह न करते हुए भी तुम को सब कुछ दिया ,पदाया लिखाया और एस काबिल बनाया की जो तुम्हारे पास हैं उसका श्रेय उन्ही को जाता हैं / फिर वही वक्त आयेगा जब तुम भी माँ बाप बनोगे /
फिर तुम…………
                                       अध्यात्म और व्यवहार

हमारे जीवन में   अध्यात्म और  व्यवहार का बड़ा ही महत्व हैं क्यों कि बिना अध्यात्म के हम अच्छा व्यवहार कर ही नहीं सकते / गुरु के ज्ञान के प्रकाश में हम जीवन जीने  की कला सीखते हैं /गुरु के चरणों से दिव्या प्रकाश निकलता हैं /उनकी चरण रज को हमें अपने हिरदय में धारण करना चाहिए / गुरु से वैसे ही प्रेम करना चाहिए जैसे अपने परिवार के सदस्यों से करते हैं / उसी तरह संसार में भी हमें लोगों से सुंदर व्यवहार करना चाहिए। प्रेम का  व्यवहार करना आना चाहिए /

Monday, 13 February 2012

परमारथ पथ के दश अलोक

 परमारथ पथ के दश अलोक :-
१.परमात्मा एक  शक्ति हैं न उसका कोई नाम हैं न रूप हैं जिसने जो नाम रख लिया वही  ठीक हैं / 
२. उसको पाने के लिए ग्रहस्थी त्याग कर जंगल में भटकने की आवश्यकता नहीं वह घर में रहकर भी प्राप्त की जा सकती हैं. 
३. अभी तुमने इशवर देखा  नहीं हैं इसलिए उसे प्राप्त करने के लिए पहले उससे मिलो जिसने  परमात्मा को  देखा  है वही तुम्हे उसका का दर्शन  करा सकता हैं /
४.अपने जीवन में आन्तरिक प्रसंता लाओ  यह बहुत बड़ा ईश्वरीय  गुण हैं/
५. ज्ञान में शांति हैं वह तुम्हे बाहर   से नहीं मिलेगी ज्ञान अंत में हैं उसके लिए आन्तरिक साधन करने होंगे /
६. अधिक  समय संसार के कामो  में लगाओ थोडा समय इश्वर  को दो लकिन उस समय के लिए तुम संसार को भूल जाओ/
७. दो कम साधक के लिए अवश्यक हैं एक तो परिश्रम से भोजन कमाना दूसरा अपने मन को हर समय काम  में लगाये रखना / 
८.ज्ञान  अनंत हैं यदि उसे एक गुरु न पूरा कर सके ! तो उसे दुसरे  गुरु से प्राप्त करना चाहिए परन्तु पूरण ज्ञानी  गुरु मिल जाने पर दूसरा गुरु नहीं करना चाहिए /
९. दुनिया   के सारे  काम करो लेकिन सेवक  बनकर मालिक बनकर नहीं /
१०. संसार में महमान बनकर रहो यहाँ की हर वास्तु किसी और की समझो मैं और मेरा का पाठ छोड़कर तू और तेरा का पाठ सीखो.
                                              समर्थ गुरु परम संत  श्री डाक्टर  चतुर्भुज सहाय  जी महाराज 

९.