Thursday, 18 July 2013

अमृत -वाणी

                                                            अमृत -वाणी 

  •   इस  जीवन को बहुत बड़ा मत समझो लकिन महँ अवश्य समझो / इसमे जो  कर  जाओगे ,वह जीवन के लिए अत्यंत आवशक चीज होगी /इसलिए   तुमसे बन सके ईश्वर का नाम लिया करो /
  • अच्छे करम किया करो,यही यज्ञ हैं ,ऐसे करम करने में जो कठिनाइयाँ उठानी पड़ती हैं ,वही  तप और इनसे दुसरो को लाभ  होता हैं ,वही दान हैं /
  • सच्चे भक्त की पहिचान यही हैं की वह दिन - रात अनाशक्ति से प्रुभु सेवा के कम करता हुआ भी (सेवा करने ) का अहंकार न करे वरन श्री भरत जी की भांति यही सोचता रहे की मैं कुछ नहीं कर सका /प्रभु कही अप्रसन्न न हो जाये क्योंकि संसार में सेवक का धर्म महान कठिन हैं /
  • आदमी बहुत समय तक भूखा रह सकता हैं ,मौन भी रह सकता हैं ,गृहस्थी और बच्चे को त्याग भी सकता हैं ,जल और अग्नि के बीच बैठ सकता हैं परन्तु मन को काम करने से रोक ले यह नहीं कर सकता इसलिए अध्यात्म साधना बहुत कठिन कही गई हैं /

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